वर्तमान समय में देखा जाए तो राजपूत समाज का राजस्थान की राजनीति में अहम योगदान रहा है।  एक और जहाँ भाजपा  अभी तक टिकटों के वितरण में 21 राजपूतों को टिकट दे चुकी है वहीं दूसरी तरफ समाज के मुख्य संगठन श्री राष्ट्रीय राजपूत करनी सेना, श्री राजपूत करनी सेना, क्षत्रिय युवक संघ आदि हुंकार रैली, स्वाभिमान रैली, शक्ति प्रदर्शन में उलझे हुए से दिख रहे है। इसे देख कर प्रतीत होता है कि इस तरह के संगठन सिर्फ अपनी दुकान चलाने से ही मतलब रखते है ना कि समाज को निष्कर्ष की ओर ले जाने में। इससे यह भी प्रतीत होता है कि यह तबका पढ़ा-लिखा है जबकि हकीकत से सभी परिचित हैं। अगर सच्चाई की ओर नजर घुमाई जाए तो इस समाज के नौजवानों ने अपनी जिंदगी कोर्ट कचहरी के गलियारों में बिता दी है। जिससे समाज किसी निष्कर्ष पर पहुँच सके लेकिन इन संगठनों के किसी फैसले से ऐसा प्रतीत होता दिखाई नही देता है कि इनका उद्देश्य किसी निष्कर्ष तक पहुँचना हो।

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यह बात  जग-जाहिर है कि राजपूत हजारों सालों के बाद भी कभी एक जगह पर नही बैठ सका और न ही कभी एक थाली में खाना खा सका है। उनका काम सिर्फ एक-दूसरे की टाॅंग खींचने में लगा रहता है। जिस तरह का काम पुराने समय में सिंहासन के लिए हुआ करता था उसी तरह का काम आज भी हो रहा है।

जब समाज ही नही रहेगा, सड़को पर मारा-फिरा होगा तो क्या फायदा ऐसी पहचान का। इसे देखते हुए हमे तो यही लगता है कि कुछ समय और है, नही तो मलाई में से मक्खी की तरह निकाल फेंक दिया जाएगा। ऐसे में यह कहना ठीक होगा कि राजपूत सत्ता बदलने की ताकत नही रखता है।

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