जब मौसम हो सर्दियों का तो सबसे पहला ख्याल गर्मागर्म स्वादिष्ट खाने का और इसके बाद सोने काआता है। सर्दियों में रजाई के बिना सोने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वैसे भी सर्द रातों में सोने का एक अपना ही अलग मजा होता है। अगर बात हो रजाई की तो सबसे पहला नाम जयपुर का आता है। आप सभी ने जयपुर की रजाई के बारे में सुना ही होगा जिसे लोग जयपुरी रजाई के नाम से जानते हैं। इस रजाई की डिमांड राजस्थान ही नही राजस्थान से बाहर भी देश- विदेश तक है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जयपुरी रजाई का इतिहास 280 साल पुराना है। महाराजा माधो सिंह जी ने जयपुरी रजाई का निर्माण कराया, जिसका वजन केवल 250 ग्राम था। जयपुरी रजाई के बारे में कहा जाता है कि यह रजाई इतनी माहीन होती थी कि इसे आप आसानी से अंगूठी के बीच में से निकाल सकते थे। जयपुरी रजाई अपनी खूबियों के लिए जानी जाती है। इसकी खास बात यह है कि इसका कम वजनदार होना, गर्माहट भरा होना और दिखने में शानदार होना है।
एक समय था जब राजस्थान में सदिर्यों के तीन से चार महीने हुआ करते थे परन्तु आज के समय में यह महीने सिमटकर सिर्फ एक से दो महीने में रह गए हैं। इसकी सीधा सा कारण है हमारे आस-पास का वातावरण। पिछले कुछ सालों से पर्यायवरण में जिस तरह से बदलाव हुआ है। इससे हम सभी आने वाले समय का अंदाजा लगा सकते हैं। हाल ही भारत की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण ने जिस तरह से अपने पैर पसारे हैं ऐसे ही हालात जयपुर में भी देखने को भी मिल रहे हैं। अगर इसी तरह के हालात बने रहे तो आने वाले समय में कहीं सर्दी की छुट्टियाँ कैलेंडर से गायब न हो जाए। अगर सर्दियाॅं ही नही होगी तो रजाई का उपयोग कम हो जाएगा और इस तरह जयपुरी रजाई का उपयोग खूद-ब-खूद कम हो जाएगा। जिससे इस धंधे से जुड़ें लोगों पर सीधा असर पड़ेगा और जो काम सालों से चला आ रहा है, जिस काम की अपनी पहचान है, वह कहीं बंद ना हो जाए। अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो जयपुरी रजाई की जगह प्रदुषण का चादर ओढ़नी पड़ जाएगी।